जातिगत जनगणना पर मुहर, भारत में पहली बार होगा डेटा संग्रह

जाति जनगणना: भारत में 2021 की बहुप्रतीक्षित जनगणना आखिरकार शुरू होने की दिशा में बढ़ रही है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि इस व्यापक प्रक्रिया को वर्ष 2026 के अंत तक पूरा कर लिया जाए।

जातिगत जनगणना पर मुहर, भारत में पहली बार  होगा डेटा संग्रह
Published By: Satish Kashyap

Caste Census:  भारत में 2021 की बहुप्रतीक्षित जनगणना आखिरकार शुरू होने की दिशा में बढ़ रही है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि इस व्यापक प्रक्रिया को वर्ष 2026 के अंत तक पूरा कर लिया जाए। हालांकि, फिलहाल इसकी कोई आधिकारिक समयसीमा या निश्चित कार्यक्रम जारी नहीं किया गया है।

एक उच्च पदस्थ सरकारी सूत्र के अनुसार, जनगणना में देरी का प्रमुख कारण यह रहा कि इसमें जाति से संबंधित जानकारी को शामिल किया जाए या नहीं—इस पर निर्णय लंबित था। अब जब इस मुद्दे पर स्पष्टता आ गई है, तो पूरी प्रक्रिया जल्द आरंभ हो सकती है।

अब तय किया गया है कि जनगणना में जाति से जुड़ी सूचनाएं भी शामिल की जाएंगी। इससे मकान सूचीकरण और आवास गणना के दौरान पूछे जाने वाले सवालों की संख्या 31 से बढ़कर 32 हो सकती है।

मार्च 2025 में गृह मंत्रालय ने संसद की एक स्थायी समिति को बताया था कि जनगणना की अधिकांश तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और अब तकनीकी स्तर पर अंतिम सुधार कार्य किया जा रहा है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि प्रक्रिया शुरू होते ही आवश्यकतानुसार अतिरिक्त बजट की मांग की जाएगी।

जनगणना 2021 और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के अद्यतन के लिए सरकार ने 2019 में क्रमशः ₹8,754.23 करोड़ और ₹3,941.35 करोड़ की मंजूरी दी थी। इस पूरी कवायद पर लगभग ₹12,000 करोड़ का खर्च अनुमानित किया गया है।

गृह मंत्री अमित शाह पहले भी कई बार कह चुके हैं कि जनगणना कार्य को शीघ्र प्रारंभ किया जाएगा। कोविड-19 महामारी के चलते 2020-21 में यह कार्य नहीं हो सका था।

डिजिटल स्वरूप में होगी पहली जनगणना
जनगणना 2021 देश की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए एक विशेष मोबाइल एप्लिकेशन और एक समर्पित जनगणना पोर्टल विकसित किया गया है, जो डेटा एकत्रण से लेकर पूरे संचालन की निगरानी तक के सभी कार्यों को डिजिटल माध्यम से संचालित करेगा।

जनगणना भारत में जनसंख्या, सामाजिक और आर्थिक स्थिति, आवासीय सुविधाएं और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी का सबसे विश्वसनीय स्रोत है। ये आंकड़े नीतियां बनाने, संसदीय क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए आवश्यक माने जाते हैं। भारत में पहली बार व्यवस्थित जनगणना 1881 में हुई थी, और तब से हर दशक में यह परंपरा जारी रही है।