कांचा गाजीबोवली जंगल बचाने की मांग, छात्रों का विरोध

Kancha Gachibowli land issue: हैदराबाद में स्थित कांचा गाजीबोवली जंगल, जो लगभग 400 एकड़ में फैला हुआ है, को तेलंगाना सरकार आईटी पार्क बनाने के लिए काटने की योजना बना रही है।

कांचा गाजीबोवली जंगल बचाने की मांग, छात्रों का विरोध
Published By: Satish Kashyap

नई दिल्ली (जनमत): जब भी जंगलों को काटने का प्रयास हुआ, तो उसे बचाने के लिए कई आंदोलन हुए हैं। उत्तराखंड में 1973 में शुरू हुआ चिपको आंदोलन हो, या फिर हैदराबाद में कांचा गाजीबोवली जंगल को बचाने के लिए स्थानीय लोग, छात्र और पर्यावरणविद सड़क पर उतर आए हों, ये सभी आंदोलन इस बात की गवाही देते हैं कि जंगलों की रक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इन आंदोलनों के बाद कई बार मामला न्यायालय तक पहुंचा, जहां जंगलों को काटने की कार्रवाई पर रोक भी लगाई गई। लेकिन विकास के नाम पर जंगलों की कटाई पर विचार करना भी जरूरी है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि यदि जंगल कटते हैं, तो इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर असर पड़ेगा।

हैदराबाद में स्थित कांचा गाजीबोवली जंगल, जो लगभग 400 एकड़ में फैला हुआ है, को तेलंगाना सरकार आईटी पार्क बनाने के लिए काटने की योजना बना रही है। इस जंगल को हैदराबाद का "फेफड़ा" भी कहा जाता है, और इसके बचाव में स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, 19 जून 2024 को तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन (टीजीआईआईसी) ने इस जमीन के उपयोग के लिए प्रस्ताव रखा, और 24 जून 2024 को इस जमीन को आईटी पार्क के लिए आवंटित करने की सहमति बनी। इसके बाद जुलाई 2024 में इसका औपचारिक ट्रांसफर हो गया। जब 30 मार्च 2025 को अचानक जंगल की कटाई शुरू की गई, तो हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद उनकी पुलिस से झड़प हुई और छात्रों को हिरासत में लिया गया। इसके बाद, हैदराबाद विश्वविद्यालय की छात्रसंघ ने भी छात्रों का समर्थन किया।

तेलंगाना सरकार का कहना है कि जिस जमीन पर विवाद हो रहा है, वह राज्य सरकार की संपत्ति है। सरकार का आरोप है कि विरोधी छात्रों और अन्य लोगों को गुमराह किया जा रहा है और विकास में बाधा डाली जा रही है। वहीं, इस मामले में रिटायर्ड वैज्ञानिक कलापाला बाबू राव और पर्यावरण संगठन 'वाटा फाउंडेशन' ने जनहित याचिका दायर की थी। उनका दावा है कि यह क्षेत्र 'डीम्ड फॉरेस्ट' श्रेणी में आता है, और इस पर कानूनी संरक्षण प्राप्त है, जिससे इसे काटना असंवैधानिक होगा। वैज्ञानिक बाबू राव का यह भी कहना है कि यह जंगल दुर्लभ प्रजातियों, पक्षियों और जानवरों का आश्रय स्थल है और इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जाना चाहिए। पर्यावरणविदों ने कांचा गाजीबोवली जंगल को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग की है, क्योंकि यहां 233 पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं और यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में शामिल प्रजातियों का घर है।

कांचा गाजीबोवली जंगल 1974 में हैदराबाद विश्वविद्यालय की स्थापना के समय 2,300 एकड़ जमीन में से 400 एकड़ भूमि का हिस्सा था। हालांकि कानूनी रूप से राज्य सरकार इस पूरी ज़मीन की मालिक है। पिछले कुछ वर्षों में तेलंगाना सरकार ने इस 2,300 एकड़ जमीन में से कई हिस्सों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए आवंटित किया है, जैसे बस डिपो, टेलीफोन एक्सचेंज, आईआईआईटी कैंपस, स्पोर्ट्स स्टेडियम आदि। विवादित 400 एकड़ ज़मीन को 2003 में एक निजी खेल प्रबंधन फर्म को सौंपा गया था, लेकिन 2006 में इसे वापस ले लिया गया। हालांकि, इस जमीन का कभी सीमांकन नहीं किया गया और न ही इसे जंगल के रूप में अधिसूचित किया गया था।

भारत में वन सुरक्षा आंदोलन एक महत्वपूर्ण सामाजिक और पर्यावरणीय पहल है, जो जंगलों की सुरक्षा और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ा गया। इस संदर्भ में कई प्रमुख आंदोलन हुए हैं:

  1. चिपको आंदोलन: 1973 में उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा शुरू किया गया, इस आंदोलन का उद्देश्य पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकना था। आंदोलनकारियों ने पेड़ों से चिपक कर कटाई को रोकने की कोशिश की।

  2. आप्टे आंदोलन: महाराष्ट्र में हुए इस आंदोलन में स्थानीय लोगों ने वन विभाग की नीतियों का विरोध किया और जंगलों के संसाधनों का उपयोग करने के अपने पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की।

  3. कंधमाल आंदोलन: ओडिशा के कंधमाल जिले में आदिवासी समुदाय ने वन सुरक्षा के लिए संघर्ष किया, जिसमें उनके पारंपरिक जीवन शैली और अधिकारों की रक्षा की गई।

  4. सार्वजनिक वन आंदोलन: 1980 के दशक में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हुए इस आंदोलन में आदिवासी और ग्रामीण समुदायों ने वनों के अधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

  5. नर्मदा बचाओ आंदोलन: यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बनने वाले बांधों के खिलाफ था, जिनके निर्माण से जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही थी, और आदिवासी समुदाय विस्थापित हो रहे थे।

  6. सांस्कृतिक आंदोलन और वन सुरक्षा: भारत के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी और ग्रामीण समुदायों ने अपनी पारंपरिक संस्कृति और जीवनशैली की रक्षा के लिए जंगलों की सुरक्षा के लिए आंदोलन चलाए।

  7. वन नीति और सरकारी पहलें: भारत सरकार ने समय-समय पर कई योजनाओं और कानूनों के माध्यम से जंगलों के संरक्षण को बढ़ावा दिया है, जैसे 1980 में वन संरक्षण अधिनियम और 1988 में राष्ट्रीय वन नीति।

इन आंदोलनों ने न केवल जंगलों की रक्षा की, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक न्याय के महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सामने लाया।