रायबरेली से महाताब खान की रिपोर्ट —
रायबरेली/जनमत न्यूज। रायबरेली कलेक्ट्रेट को लेकर वर्षों से चली आ रही कहावत कि यहां सरकारी फरमान बिकते हैं, एक बार फिर गंभीर आरोपों के साथ सामने आई है। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि कलेक्ट्रेट कार्यालय में बिना लेन-देन आम आदमी का कोई भी काम नहीं होता और गैर-जिम्मेदार अधिकारियों की शह पर प्रशासनिक अराजकता पनप चुकी है।
शिकायत के अनुसार, आम नागरिक अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कलेक्ट्रेट पर निर्भर रहता है, लेकिन समय पर कार्य न होने के कारण उसे मजबूरी में दलालों का सहारा लेना पड़ता है। आरोप है कि ये दलाल कलेक्ट्रेट के पेशकार महेश त्रिपाठी को रिश्वत देकर फाइलें आगे बढ़वाते हैं। यह कथित अवैध व्यवस्था बीते लगभग 20 वर्षों से चल रही है।
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि प्रशासनिक निगरानी और जवाबदेही के अभाव में निचले स्तर के कर्मचारी और बिचौलिए सक्रिय हो गए हैं, जिससे भ्रष्टाचार को खुली छूट मिल रही है। इसका असर अन्य विभागों तक फैल चुका है और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
आरोपों को बल उस घटना से भी मिलता है, जब दो माह पूर्व एंटी करप्शन टीम ने ऊंचाहार एसडीएम के पेशकार कृष्ण बहादुर सिंह को रिश्वत लेते रंगेहाथ गिरफ्तार कर जेल भेजा था। शिकायत के मुताबिक, करीब तीन माह बाद जमानत मिलने पर उसी आरोपी को दोबारा एसडीएम ऊंचाहार के पेशकार पद पर तैनात कराने में कलेक्ट्रेट के पेशकार महेश त्रिपाठी की भूमिका रही। इस प्रकरण ने कलेक्ट्रेट प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इन्हीं आरोपों को लेकर कुछ लोग कलेक्ट्रेट परिसर में धरने पर बैठ गए हैं। धरनारत लोगों का कहना है कि उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपकर संबंधित अधिकारी के तबादले की मांग की है और मांग पूरी होने तक धरना जारी रखने की चेतावनी दी है। आरोप है कि ज्ञापन देने के दौरान सिटी मजिस्ट्रेट आक्रोशित हो गए और आवेदन पत्र को फेंक दिया। इस घटना का वीडियो सामने आने की भी चर्चा है।
पूरा मामला अब प्रशासनिक संवेदनशीलता, पारदर्शिता और जवाबदेही पर नई बहस छेड़ रहा है। सवाल यह है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी फाइलों में ही दबकर रह जाएगा।