मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने लगाई ठुमके 

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने जमकर किया डांस। इसके जरिए उन्होंने अपने अगले जन्म को सुधारने की कामना की।

मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने लगाई ठुमके 
REPORTED BY - AJEET SINGH , PUBLISHED BY - MANOJ KUMAR

वाराणसी/जनमत। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने जमकर किया डांस। इसके जरिए उन्होंने अपने अगले जन्म को सुधारने की कामना की। नगर वधुओं के नृत्य को देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रही। पूरी रात जागरण चलता रहा। चैत्र नवरात्र की षष्ठी तिथि पर शुक्रवार की रात मणिकर्णिका घाट पर अद्भुत नजारा देखने को मिला। बनारस की यह परंपरा 350 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है।
बतादें कि महाश्मशान वह अंतिम स्थान है, जहां इंसान राख में तब्दील हो जाता है। यह राख मुक्ति की राह अग्रसर करती है। हालांकि दुनिया से जाने वाले अपने पीछे रोते-बिलखते परिजनों को छोड़ जाते हैं। बनारस में इस स्थान से कई अद्भुत परंपराएं जुड़ी हुई हैं। इनका निर्वहन कई वर्षों के किया जाता है। नगरवधुएं यहां श्मशानघाटों पर नृत्यांजलि प्रस्तुत करती हैं। शुक्रवार को भी यह नजारा देखने को मिला।
मान्यता के अनुसार इस कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुखी हुए। यह संदेश धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधुओं तक भी जा पहुंचा। नगर वधुओं ने डरते-डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता है तो वह अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंलि प्रस्तुत कर सकती हैं। नगर वधुओं का संदेश पाकर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने नगर वधुओं को आमंत्रित किया। तब से यह परंपरा चल निकली। वहीं दूसरी तरफ नगर वधुओं के मन में यह विचार आया कि अगर वह इस परंपरा को निरंतर बढ़ाती रहीं तो उन्हें इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद से लगातार यह परंपरा चली आ रही है। आज भी नगरवधुएं कहीं भी रहे लेकिन चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्वयं आ जाती हैं।
शुक्रवार को पूरी रात जागरण चला। जलती चिताओं के पास मंदिर में अपने परंपरागत स्थान से इसकी शुरुआत हुई। इस पूरे आयोजन के दौरान बड़ी संख्या में महाश्मशान में लोग मौजूद रहे। नगरवधुएं भी भगवान भोलेनाथ के आगे प्रस्तुति देकर खुद को भाग्यशाली मान रहीं थीं। नगर वधुओं ने बताया कि हम तो इसी उम्मीद के साथ यहां आते हैं कि हमारा यह जन्म मुक्ति के साथ खत्म हो। अगला जन्म हमें किसी ऐसे रूप में मिले जहां हम भी एक सौभाग्यशाली और संपन्न जीवन में जी सकें। एक अच्छे परिवार में जा सकें। नगर वधुओं का कहना है कि इस नरक भरे जीवन से मुक्ति की कामना के साथ हम भोलेनाथ के आगे अपना यह नृत्य प्रस्तुत करते हैं और उनसे यही कामना करते हैं कि इस नरक भरे जीवन से मुक्ति देकर हमारा अगला जीवन सुखमय और अच्छा कर दें।