धारी देवी मंदिर: उत्तराखंड की रक्षक देवी और उनकी अद्भुत मान्यताएं

उत्तराखंड की देवभूमि में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन धारी देवी मंदिर का स्थान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की देवी को उत्तराखंड की रक्षक देवी माना जाता है। प्रतिदिन यहां श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, लेकिन नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है। यहां देवी माता के सिर की पूजा होती है।

धारी देवी मंदिर: उत्तराखंड की रक्षक देवी और उनकी अद्भुत मान्यताएं

उत्तराखंड (जनमत):  उत्तराखंड की देवभूमि में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन धारी देवी मंदिर का स्थान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की देवी को उत्तराखंड की रक्षक देवी माना जाता है। प्रतिदिन यहां श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, लेकिन नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है। यहां देवी माता के सिर की पूजा होती है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है, और इस प्रसिद्ध शक्ति पीठ से जुड़ी मान्यताएं और इसके धार्मिक महत्व के बारे में हम आज आपको बताएंगे।

धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है और यह चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ता है। मान्यता है कि द्वापर युग से यह मंदिर धारो गांव के पास स्थित था। इसे चारधामों का रक्षक भी माना जाता है। यहां देवी माता के धड़ की पूजा की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भयंकर बाढ़ आई, तो देवी की मूर्ति भी बहकर धारो गांव के पास एक चट्टान पर आकर रुक गई। इसके बाद एक दिव्य वाणी सुनाई दी, जिसमें कहा गया कि देवी की मूर्ति को धारो गांव में स्थापित किया जाए। इसके बाद गांववासियों ने देवी की मूर्ति को यहां स्थापित किया और तभी से यहां पूजा की परंपरा शुरू हो गई।

धारी देवी मंदिर में देवी की मूर्ति तीन बार दिन में रूप बदलती है—सुबह कन्या के रूप में, दोपहर में युवती के रूप में और शाम को वृद्ध महिला के रूप में। यह चमत्कार प्रतिदिन होता है, और भक्त विशेष रूप से इस अद्भुत रूप को देखने के लिए सुबह से शाम तक यहां रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना है कि 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ का कारण धारी देवी की मूर्ति को उसके स्थान से हटाना था। 16 जून 2013 को धारी देवी की मूर्ति को पुराने स्थान से स्थानांतरित किया गया था, और उसी शाम को राज्य में भयंकर बाढ़ आई, जिसमें हजारों लोगों की जान गई। उत्तराखंड के लोग मानते हैं कि यह बाढ़ माता के क्रोध के कारण आई थी।

धारी देवी मंदिर में देवी काली के सिर की पूजा होती है, जबकि कालीमठ में माता के धड़ की पूजा की जाती है। दोनों मंदिर देवी काली को समर्पित हैं, लेकिन कालीमठ को तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जबकि धारी देवी को चारधामों की संरक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है।

धारी देवी मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और शाम को 7 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। 

धारी देवी मंदिर पहुंचने के लिए देहरादून हवाई अड्डे से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी है, और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से लगभग 115 किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ती है। यहां पहुंचने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं, और आप देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, पौड़ी, या कोटद्वार से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।

Published By: Satish Kashyap