44 साल बाद दिहुली नरसंहार केस में तीनों को फांसी की सजा

मैनपुरी के दिहुली नरसंहार मामले में मंगलवार को स्पेशल डकैती कोर्ट की ADJ इंद्रा सिंह ने अपना निर्णय सुनाया। 24 दलितों की सामूहिक हत्या में तीन डकैतों, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा, प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। वहीं, दो अन्य दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। 

44 साल बाद  दिहुली नरसंहार केस में तीनों  को फांसी की सजा

 मैनपुरी (जनमत):मैनपुरी के दिहुली नरसंहार मामले में मंगलवार को स्पेशल डकैती कोर्ट की ADJ इंद्रा सिंह ने अपना निर्णय सुनाया। 24 दलितों की सामूहिक हत्या में तीन डकैतों, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा, प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। वहीं, दो अन्य दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। 

इन दोषियों को फांसी की सजा मिल चुकी है, लेकिन वे कानूनी अधिकार का प्रयोग करते हुए 30 दिन के भीतर हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। हाई कोर्ट सेशन कोर्ट के फैसले की पुनरावलोकन करके, फांसी की सजा को बरकरार रख सकता है या उसमें बदलाव भी कर सकता है। जब कोर्ट ने दोषियों को सजा सुनाई, तो वे कोर्ट में ही रोने लगे। 

मामले की बात करें तो 18 नवंबर 1981 को पुलिस की वर्दी पहने 17 डकैतों के गिरोह ने शाम के समय दिहुली गांव में हमला किया। ठाकुरों राधेश्याम सिंह उर्फ राधे और संतोष सिंह उर्फ संतोषा के नेतृत्व में उन्होंने दलित परिवारों को निशाना बनाया और 24 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। उस वक्त 17 साल के छोटेलाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था, ‘मैं अपने खेतों में काम कर रहा था, तभी गोलीबारी की आवाजें सुनाई दीं। सबसे पहले ज्वालाप्रसाद की हत्या की गई। उसके बाद गोलीबारी शुरू हो गई। हममें से कई लोग पास के जाजूमई गांव में भाग गए।’ एक स्थानीय व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 307 और 396 के तहत 17 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इस चार दशक पुरानी मामले में 14 आरोपियों की मौत हो चुकी है। 

नरसंहार के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी। वहीं, विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने पैदल यात्रा निकाली और पीड़ित परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की थी। इस फैसले के बाद वकील रोहित शुक्ला ने कहा कि करीब चार दशकों के बाद पीड़ित परिवार को न्याय मिला है। कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है और इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि कोई भी अपराधी कानून से बच नहीं सकता है।

Published By: Satish Kashyap