मौलाना फजलुर रहमान का हमला: सेना की नीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत

पाकिस्तान के प्रमुख धार्मिक नेता और सांसद मौलाना फजलुर रहमान ने भारत-पाकिस्तान के तनाव को लेकर पाकिस्तान की सेना और सरकार की नीतियों पर कड़ी आलोचना की है।

मौलाना फजलुर रहमान का हमला: सेना की नीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत
Published By: Satish Kashyap

देश/विदेश (जनमत): पाकिस्तान के प्रमुख धार्मिक नेता और सांसद मौलाना फजलुर रहमान ने भारत-पाकिस्तान के तनाव को लेकर पाकिस्तान की सेना और सरकार की नीतियों पर कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि कश्मीर मुद्दे पर जोर देने से पहले पाकिस्तान को अफगानिस्तान के मसले पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया कि अफगानिस्तान ने हमेशा भारत का समर्थन किया है और अब तालिबान भी भारत के पक्ष में खड़ा है। मौलाना फजलुर रहमान जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख हैं, जो पाकिस्तान का एक इस्लामी कट्टरपंथी राजनीतिक दल है।

इस्लामाबाद में पत्रकारों से बातचीत करते हुए मौलाना फजलुर रहमान ने कहा, "पाकिस्तान की सेना और सरकार की नीतियों से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहा है। कश्मीर के मुद्दे को बार-बार उठाने से पहले हमें अफगानिस्तान की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अफगानिस्तान हमेशा से भारत के साथ रहा है, और अब तालिबान भी भारत के पक्ष में है। ऐसे में सेना की पुरानी नीतियां पाकिस्तान को और कठिनाइयों में डाल रही हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को अपनी विदेश नीति और क्षेत्रीय रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि मौजूदा दृष्टिकोण से न तो कश्मीर मुद्दे का समाधान निकल रहा है और न ही क्षेत्र में शांति स्थापित हो रही है।

मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना की रणनीति को 'नाकाम' बताते हुए कहा कि सेना की एकतरफा सोच ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया है। उनका कहना था कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद भी भारत ने अफगानिस्तान में अपनी कूटनीतिक स्थिति मजबूत की है, जबकि पाकिस्तान का प्रभाव कम हुआ है।

इस्लामाबाद में आयोजित एक सम्मेलन में मौलाना फजलुर रहमान ने कहा, "अफगानिस्तान में हमेशा भारत समर्थक सरकारें रही हैं, चाहे वह जाहिर शाह हो या अशरफ गनी। अब इस्लामिक अमीरात सरकार है, जिसे कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान के पक्ष में किया जा सकता था, लेकिन हमने उन्हें भी दूर कर दिया। सीमा पर मालवाहन वाहनों की लंबी कतारें लग रही हैं और सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हो रही है। इन गलत नीतियों का सिलसिला तब तक चलता रहेगा, जब तक सैन्य सोच में राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण को शामिल नहीं किया जाता।"

उन्होंने आगे कहा, "अभी जब भारत के साथ यह मुद्दा सामने आया है तो पूरा देश एकजुट है, लेकिन अफगानिस्तान के मामले में ऐसा नहीं है। इसलिए आपको अपनी राजनीति, अर्थव्यवस्था और संसाधनों के साथ स्पष्ट रुख अपनाना होगा।"