नाबालिग से दुष्कर्म के प्रयास में जांच अधिकारी ने 6 समोसे लेकर लगा दी फाइनल रिपोर्ट, विशेष न्यायाधीश ने निरस्त की अंतिम आख्या

नाबालिग से दुष्कर्म के प्रयास, पास्को एक्ट और एससी-एसटी एक्ट के गंभीर मामले में जांच अधिकारी की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। आरोपी से महज छह समोसे की रिश्वत लेकर जांच अधिकारी ने अंतिम आख्या तैयार कर न्यायालय को सौंप दी थी, जिसे विशेष न्यायाधीश नरेंद्र पाल सिंह राणा की कोर्ट ने सुनवाई के बाद निरस्त कर दिया।

नाबालिग से दुष्कर्म के प्रयास में जांच अधिकारी ने 6 समोसे लेकर लगा दी फाइनल रिपोर्ट, विशेष न्यायाधीश ने निरस्त की अंतिम आख्या
REPORTED BY - NAND KUMAR, PUBLISHED BY - MANOJ KUMAR

एटा/जनमत न्यूज। जिले के जलेसर थाना क्षेत्र में वर्ष 2019 में दर्ज नाबालिग से दुष्कर्म के प्रयास, पास्को एक्ट और एससी-एसटी एक्ट के गंभीर मामले में जांच अधिकारी की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। आरोपी से महज छह समोसे की रिश्वत लेकर जांच अधिकारी ने अंतिम आख्या तैयार कर न्यायालय को सौंप दी थी, जिसे विशेष न्यायाधीश नरेंद्र पाल सिंह राणा की कोर्ट ने सुनवाई के बाद निरस्त कर दिया।
पीड़ित पक्ष ने कोर्ट में प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र दाखिल किया था, जिसमें कहा गया कि विवेचक ने न तो पीड़िता के पक्ष में दर्ज बयानों को महत्व दिया और न ही चश्मदीद गवाहों का कोई भी बयान दर्ज किया। पीड़िता की मां और खुद पीड़िता के बयान में साफ तौर पर दुष्कर्म का प्रयास और अश्लील हरकतें किए जाने की पुष्टि थी।
घटना के वक्त किशोरी महज 14 साल की थी। वह स्कूल से लौट रही थी, तभी आरोपी वीरेश ने उसे पकड़कर खेतों में ले जाकर कपड़े फाड़ दिए और जान से मारने की धमकी देकर फरार हो गया। परिजनों के थाने पहुंचने पर भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई और ना ही मेडिकल परीक्षण कराया गया।

न्याय के लिए भटकते हुए पीड़िता ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से गुहार लगाई, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर अंततः न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई और विवेचना शुरू हुई। जांच अधिकारी ने वर्ष 2019 में ही अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर घटना को निराधार बता दिया। इसके विरुद्ध पीड़ित पक्ष ने आपत्ति की, जिसके बाद पुनः विवेचना के आदेश हुए।
दिसंबर 2024 में पुनः दाखिल की गई जांच रिपोर्ट पर भी सवाल उठे। न्यायालय ने गहन सुनवाई के बाद आरोपी और गवाहों के बयानों का अवलोकन कर जांच अधिकारी की अंतिम आख्या को निरस्त कर दिया। न्यायालय ने आदेश दिया कि इस मामले में एक माह के भीतर साक्ष्यों के आधार पर विधिसम्मत जांच कर रिपोर्ट पेश की जाए।
मामले ने पुलिस विवेचना की निष्पक्षता और गंभीर अपराधों में पुलिस रवैये पर सवाल खड़े कर दिए हैं।